समान नागरिक संहिता क्या हैं? सरकार क्यों लागू करना चाहती, यूनिफार्म सिविल कोड के बारे में पूरी जानकारी देखें: Uniform Civil Code Kya Hai

हमारा देश अनेकता में एकता का देश हैं, ऐसे में यहाँ सभी धर्म-संप्रदायों को अपने तरीक़े से चलने का अधिकार प्राप्त हैं। लेकिन इसी बीच एक समस्या उत्पन्न होती हैं जिसमें कुछ धार्मिक नियम तथा संविधान के नियमों के मध्य द्वन्द होता नज़र आता हैं। इस समस्या के उपाय के लिए सरकार ने Uniform Civil Code लाने की अपील की हैं। बहुत से लोग यह नहीं जानते हैं कि Uniform Civil Code Kya Hai ? आज का हमारा लेख इसी बिंदु को ध्यान में रखकर लिखा गया हैं।

Uniform Civil Code Kya Hai
Uniform Civil Code Kya Hai

Uniform Civil Code

Uniform Civil Code को हिन्दी भाषा में ‘समान नागरिक संहिता‘ कहा जाता हैं। इसका अर्थ हैं सभी नागरिकों के लिए एक समान नियम तथा क़ानून। इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार आदि के लिए देश के सभी नागरिकों पर एक समान क़ानून व्यवस्था लागू करने का प्रावधान किया गया हैं। यह क़ानून किसी भी धर्म सम्रदाय से ऊपर रहेंगे तथा हर धर्म के लोगों पर समान रूप से लागू होंगे।

सरकार द्वारा कई बार इसे लागू करने का प्रयास किया गया। लेकिन संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 तथा समान नागरिक संहिता के बीच द्वन्द की स्थिति बनती नज़र आने के कारण हर बार न्यायपालिका किसी स्पष्ट नतीजे पर नहीं पहुँच पाती हैं।

संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 क्या हैं?

भारत के संविधान में व्यक्ति को मानवाधिकारों के दायरे में रहते हुए अपनी मर्ज़ी से जीवन व्यापन करने की पूरी स्वतंत्रता दी गई हैं। संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 के अंदर व्यक्ति को धार्मिक स्वतंत्रता दी गई हैं। इन अनुच्छेदों में मुख्य रूप से व्यक्ति को निम्नलिखित अधिकार प्रदान किए गए हैं-

  • व्यक्ति को अपने विवेक के अनुसार किसी भी धर्म, संप्रदाय, पंथ को मानने तथा उसका अनुसरण करने का अधिकार हैं। इसके लिए उसे किसी भी तरह से बाध्य नहीं किया जा सकता हैं।
  • व्यक्ति को उसके द्वारा चुने गये धर्म के रीति रिवाजों को मानने का पूर्ण अधिकर प्राप्त हैं।
  • इसके साथ ही यह अनुच्छेद व्यक्ति को उसके धर्म का प्रचार करने की भी स्वतंत्रता प्रदान करते हैं। इसके लिए उसे धार्मिक सम्मेलनों का आयोजन करने का अधिकार भी प्राप्त हैं।

समान नागरिक संहिता की विशेषताएँ

  • धार्मिक स्वतंत्रता के साथ न्याय व्यवस्था का संतुलन
  • समान नागरिक संहिता में सभी नागरिकों के लिए एक समान क़ानून व्यवस्था बनाने का प्रावधान हैं जो किसी भी धर्म संप्रदाय के नियमों तह रीति रिवाजों के ऊपर मान्य होगी।
  • किसी भी आपराधिक मामले में धार्मिक नियमों से ऊपर न्यायालय के क़ानून नियमों को मानना
  • किसी भी धर्म संप्रदाय से ऊपर मानव अधिकारों को मानना
  • सभी धर्मों को समान अधिकार प्रदान करना

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धार्मिक स्वतंत्रता की समस्या

आप सोच रहे होंगे कि धार्मिक स्वतंत्रता में आख़िर क्या समस्या हो सकती हैं। लेकिन ऐसे बहुत से पक्ष हैं जहां धार्मिक स्वतंत्रता मनुष्य मानव अधिकारों का हनन करते नज़र आती हैं। इस प्रकार की समस्याओं को दूर करने के लिए Uniform Civil Code की आवश्यकता नज़र आती हैं।

उदाहरण के लिए हमारे देश के क़ानून के अनुसार शादी करने के लिए न्यूनतम उम्र 21 वर्ष होनी अनिवार्य हैं। लेकिन कुछ कुछ धर्मों तथा संप्रदायों में इस क़ानून को ना मानकर कम उम्र में ही शादी कर दी जाती हैं। इससे समाज में संतुलन ख़राब होता हैं। यही नहीं इसके अलावा भी बहुत से कारण हैं-

  • कम उम्र में शादी
  • कुछ धार्मिक संप्रदायों में आज भी लड़कियों को पढ़ने का अधिकार नहीं हैं।
  • देश के क़ानून की सहायता ना लेकर सामाजिक नियमों के अनुसार न्याय करने की परंपरा जो कई बार अन्याय का रूप ले लेती हैं।
  • व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध धार्मिक शिक्षा अनुष्ठानों में प्रवेश दिलवाना
  • सामुदायिक टकराव
  • एक धर्म को दूसरे से श्रेष्ठ मानने का भाव

यह सभी कुछ कारण हैं जिनमें बदलाव की ज़रूरत हैं इसके लिए एक समान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास किया जा रहा हैं।

समान नागरिक संहिता की रूपरेखा

समान नागरिक संहिता के पक्ष में लंबे समय से राजनीतिक उतार चढ़ाव होता रहा हैं। सन् 1930 में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी समान नागरिक संहिता का समर्थन किया लेकिन उस समय के कई वरिष्ठ व्यक्तियों द्वारा उनका विरोध किया गया। (Source Wikipedia) इसके बाद कई बड़े राष्ट्रवादी नेताओं ने इसके समक्ष अपने विचार रखे तथा लागू करने का प्रयास किया लेकिन इसका कोई परिणाम निकलकर सामने नहीं आया।

विधि आयोग की स्थापना

वर्तमान सरकार ने भी समान नागरिक संहिता के समग्र अध्ययन करने के लिए सन् 2016 में विधि आयोग की स्थापना की। विधि आयोग के अध्ययन से सामने आया कि यूनिफार्म सिविल कोड संविधान के अनुच्छेद 14 तथा अनुच्छेद 25 के बीच द्वन्द की स्थिति उत्पन्न करता हैं।

अनुच्छेद 14:- यह अनुच्छेद कानून के समक्ष समानता का अधिकार प्रदान करता हैं। इसके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को भारतीय क़ानून व्यवस्था में न्याय की समानता का अधिकार हैं। चाहे वह किसी भी धर्म संप्रदाय का हो।

इसी के साथ अनुच्छेद 25 धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करता हैं जहां हर व्यक्ति को अपने अनुसार किसी भी धर्म को मानने का अधिकार दिया जाता हैं।दोनों अनुच्छेदों में द्वन्द यह हैं कि समान नागरिक संहिता संविधान के अनुच्छेद 14 का पूर्ण रूप से पालन करती हैं लेकिन इसके साथ ही वह अनुच्छेद 25 के कुछ अधिकारों का खनन भी करती हैं।

अगर समान नागरिक संहिता लागू हुई तो क्या बड़े बदलाव होंगे?

समान नागरिक संहिता लागू करने पर देश नागरिकों के मानवाधिकारों की रक्षा होगी तथा उन्हें पहले की तुलना में अधिक अधिकार प्राप्त हो सकेंगे। देश में एक स्थाई क़ानून व्यवस्था लागू हो सकेगी जिसमें सही मामलों में समान न्याय करने में आसानी होगी। सभी पर समान नियम लागू होंगे जो किसी भी धर्म तथा संप्रदाय से ऊपर होंगे।

देश में कुछ स्थानों पर धर्म के नाम पर हो रहे मानव अधिकारों के हनन को रोका जा सकेगा। बाल विवाह, कन्या भ्रूण हत्या, दकन प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयों को ख़त्म करने में सहायता मिलेगी। इसके साथ ही देश में सभी धर्मों के मध्य एकता की भावना पैदा हो सकेगी जिससे देश एकीकरण को हर चलेगा।

समान नागरिक संहिता के दुष्परिणाम क्या हो सकते हैं?

समान नागरिक संहिता लागू होने पर इसके सकारात्मक प्रभाव के साथ इसके कुछ नकारात्मक परिणाम भी हो सकते हैं। हमारे देश में धर्म के कट्टर समर्थकों तथा कुछ समुदायों द्वारा इसका हिंसक विरोध किया जा सकता हैं। देश के कुछ इलाक़ों में आज भी पंचायतों द्वारा न्याय का कार्य किया जाता हैं लेकिन हो सकता हैं उनका न्याय देश की क़ानून व्यवस्था की नज़र में अन्याय हो। ऐसे में वे हिंसा फैलाने के कार्य कर सकते हैं।

हमारी नज़र में समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए क्या प्रयास किया जा सकता हैं?

समान नागरिक संहिता की ज़रूरत देश को वर्तमान समय में सबसे ज़्यादा हैं। लेकिन चूँकि धर्म निरपेक्षता का होना अनिवार्य हैं अतः इसके लिए निम्न स्तर पर बदलाव किए जाने की आवश्यकता हैं। विधि आयोग के अनुसार समान नागरिक संहिता को लेकर संविधान के अनुच्छेद 14 और 25 के मध्य द्वन्द सिद्ध हैं।

मानव अधिकार और क़ानून के प्रति लोगों के सकारात्मक दृष्टिकोण के ज़रिए देश में यूनिफार्म सिविल कोड को लागू किया जा सकता हैं।

वास्तव में द्वन्द समान नागरिक संहिता और धर्म के मध्य ना होकर धर्म के मात्र उन नियमों के मध्य हैं जो मानव अधिकारों का हनन करते हैं। संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता के लिए एक प्रावधान होना चाहिए कि हर व्यक्ति को अपने विवेक और व्यक्तिगत पसंद के अनुसार धर्म को मानने का अधिकार हैं लेकिन धर्म के नियमों में केवल उन्हीं नियमों तथा रीति रिवाजों को मानने का अधिकार हैं जो देश की न्याय संहिता के पक्ष में हैं।

इसके साथ ही धार्मिक समुदायों में अन्याय को बढ़ावा देने वाले रीति रिवाजों की रोकथाम के लिए सख़्त नियम बनाने की आवश्यकता हैं। शिक्षा के क्षेत्र में बालिकाओं की शिक्षा पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता हैं। धार्मिक अहिंसा का सबसे ज़्यादा प्रभाव महिलाओं पर ही पड़ता हैं।

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